एक मौत से मिला हजारों जिंदगियां बचाने का आइडिया: मोबाइल बताएगा- पेट में पल रहा बच्चा कैसा है, विकलांग होगा और न जान जाएगी

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'साल 2016 की बात है। मैं कर्नाटक के एक अस्पताल में था। 29 साल की महिला के बच्चा होने वाला था। हॉस्पिटल में मौजूद उसके पति और परिवार के लोग बेहद खुश थे। परिजन महिला की प्रेग्नेंसी और उनके घर में आने वाले नन्हे मेहमान को लेकर खुशियां मना रहे थे, लेकिन कुछ पल में ही ये खुशी गम में बदल गई। महिला के स्टिल बर्थ डिलीवरी हुई थी।
स्टिल बर्थ डिलीवरी में पैदा होने वाले बच्चे की हार्ट बीट (धड़कन नहीं होती है। वह मरा हुआ पैदा होता है। 20 सप्ताह से लेकर 35 सप्ताह तक कभी भी बच्चा हो सकता है। मैंने महिला का इलाज कर रही डॉक्टर से बात की तो और ज्यादा हैरान हो गया। डॉक्टर को भी इस बात का हल्का सा भी अहसास नहीं था। डॉक्टर ने बताया था कि सोनोग्राफी में भी गर्भ के मूवमेंट का पता नहीं चल पाया।'

'एक दूसरे हॉस्पिटल में विजिट के दौरान देखा कि एक नवजात बच्चे के हाथ ही नहीं था। इसमें भी डॉक्टर को पहले कोई रिपोर्ट ही नहीं मिल पाई थी। अगर जन्म से पहले बच्चे की बीमारी का पता चल जाता तो मां के जरिए बच्चे में जरूरी न्यूट्रिशियन्स दिए जा सकते थे। अगर ऐसा होता तो बच्चा अपाहिज नहीं पैदा होता।'

ये सिर्फ दो किस्से हैं। मां और बच्चों की ऐसी ही पीड़ा को राजस्थान के अलवर के रहने वाले 33 साल के अरुण अग्रवाल ने छह साल तक महसूस किया। वे कई हॉस्पिटल्स में घूमे। अस्पतालों में वार्डों में घंटों बिताए। इस दौरान आइडिया आया कि क्या वे मां और बच्चे को कोई डिवाइस बनाकर बचा सकते हैं। बच्चों को अपाहिज बनाने से कैसे रोका जा सकता है?

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इसके लिए उन्होंने एक सेंसर मोबाइल डिवाइस 'जनित्री' बनाई है। ये डिवाइस ऐसी थी, जिससे जान आसानी से बचाई जा सकती हैं। ये डिवाइस मां और गर्भ में पल रहे बच्चे की मॉनिटरिंग करती है। साथ ही सभी मेडिकल रिपोर्ट्स मोबाइल के जरिए डॉक्टर तक पहुंचा देती है। इससे डॉक्टर्स के मां और बच्चे से जुड़ी जानकारी तत्काल देख सकते हैं अगर कुछ गड़बड़ी है तो हालात बिगड़ने से पहले इलाज कर सकते हैं।

दो हजार प्रेग्नेंट महिलाओं की जान बची
अरुण का दावा है कि इस डिवाइस के जरिए अब तक 2 हजार से ज्यादा प्रेग्नेंट महिलाओं की जान बची है। इस डिवाइस बनाने के प्रोजेक्ट से रियलिटी शो शार्क टैंक इंडिया के जज इतने इंप्रेस हुए कि इन्वेस्ट करने के लिए वे आपस में भिड़ गए। आखिर में एमक्योर फार्मा की एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर नमिता थापर के साथ 2.5 प्रतिशत इक्विटी पर एक करोड़ रुपए में उनकी डील फाइनल हो गई।

1 हजार में 30 बच्चों की मौत हो जाती है
क्या आप जानते हैं कि आज भी भारत में एक लाख में से 97 महिलाओं की मौत बच्चे को जन्म देने या प्रेग्नेंसी के दौरान हो जाती है। यही नहीं, एक हजार में से 30 बच्चों की मौत जन्म लेने के दौरान या जन्म लेने के बाद हो जाती है।

इनमें से 80 प्रतिशत को बचाया जा सकता है, प्रेग्नेंसी के आखिरी तीन महीने में गर्भवती महिला और बच्चे पर थोड़ी ज्यादा नजर रखकर, वो भी पांच गुना कम खर्च में । अरुण अग्रवाल की सेंसर मोबाइल डिवाइस 'जनित्री' बनाई है, जिससे ये जान आसानी से बचाई जा सकती हैं।

इस डिवाइस को बनाने से पहले अरुण ने करीब 6 साल तक हॉस्पिटल्स में रिसर्च की और वहां अपना समय बिताया।



बिना डॉक्टर के पहुंचे भी इलाज संभव
जनित्री मोबाइल एप के जरिए जानकारी देता है। एक 5-6 सेंसर लगा बेल्ट मां के पेट पर लगाया जाता है। इसी बेल्ट को USB और ब्लूटूथ के जरिए टेब या मोबाइल से कनेक्ट कर दिया जाता है। अब ये सेंसर अपना काम करते हैं और मां-बच्चे की हेल्थ से जुड़े सभी पैरामीटर्स की रिपोर्ट्स तैयार करना शुरू कर देते हैं।

इन रिपोर्ट्स को अलग-अलग लॉगिन आईडी और पासवर्ड के जरिए दुनिया के किसी भी कोने में किसी भी पल देखा जा सकता है। इसकी मदद से डॉक्टर मां और पेट में पल रहे बच्चे की हर समस्या को तत्काल देखकर उसका इलाज कर सकते हैं। खास बात ये है कि इसमें मरीज के पास फिजिकली पहुंचना भी जरूरी नहीं है।

    इस डिवाइस के जरिए डॉक्टर्स मां और बच्चे दोनों की हर समय मॉनिटरिंग कर सकते हैं।

खर्च भी सिर्फ 29 हजार
अरुण ने बताया कि दुनिया में मदर चाइल्ड हेल्थकेयर में फीटर मॉनिटरिंग नई नहीं है, लेकिन उनका दावा है कि 'जनित्री' सबसे सस्ता और अफोर्डेबल डिवाइस है।

अभी मार्केट में इस तरह की अन्य डिवाइस डेढ़ से दो लाख रुपए तक आती है, लेकिन यह डिवाइस सिर्फ 29 हजार रुपए में मिलती है, वहीं इसका सॉफ्टवेयर का सब्सक्रिप्शन 10 हजार रुपए सालाना है।

पिछले साल उनके इस बिजनेस ने एक करोड़ रुपए से ज्यादा की सेल की थी। वहीं इस साल 4 करोड़ की सेल करीब-करीब फाइनल हो गई है। अरुण के मुताबिक अगले साल कम से कम 20 करोड़ की सेल होने के आसार हैं।

अरुण ने बताया कि अब तक हम बड़ी-बड़ी मशीनें डेवलप कंट्रीज से इम्पोर्ट करते रहे हैं। हमने इस टेक्नोलॉजी और मॉनिटरिंग की पूरी पावर एक मोबाइल में दे दी। इसे ऑपरेट करना भी मुश्किल नहीं है। नर्स से लेकर डॉक्टर तक जब चाहे इसे ऑपरेट कर रिपोर्ट्स जनरेट कर सकते हैं।

ये डिवाइस सेंसर बेस्ड है। डॉक्टर्स दुनिया के किसी भी कोने में बैठ पेशेंट पर हर समय निगरानी रख सकते हैं।



एप के जरिए तुरंत इलाज मिलेगा और जान बचेगी
अरुण ने बताया कि इस डिवाइस के जरिए मदर-बेबी मिस हैपनिंग में बहुत कमी आएगी। कॉम्प्लिकेशन का पता चलते ही ट्रीटमेंट जल्दी होगा।

फिलहाल वो अपना ये काम बेंगलुरु से कर रहे हैं। देश भर में 50 से ज्यादा हॉस्पिटल्स और करीब 50 हजार से ज्यादा महिलाएं उनका डिवाइस यूज कर चुकी हैं या कर रही हैं।

अब आने वाले दिनों में उनका टारगेट है कि जल्दी से जल्दी उनकी ये डिवाइस शहरों के साथ ही हर गांव-ढाणी तक पहुंचे।

इसके लिए वो मार्केटिंग टीम भी बिल्ड कर रहे हैं और नए डिस्ट्रीब्यूटर्स को भी ला रहे हैं।


अरूण को अब तक इस डिवाइस के जरिए 2 हजार जिंदगियां बचा चुके हैं। दावा है कि उनकी ये डिवाइस सबसे सस्ती है।



डिवाइस इतना पसंद आया कि जज आपस में भिड़ गए
'शार्क टैंक इंडिया सीजन 2' में अरुण का डिवाइस जजेज को इतना पसंद आया कि डील फाइनल करने के दौरान शो के जज आपस में भिड़ गए थे।

इसके बारे में अरुण ने कहा- शो में जाने से पहले ही मुझे पता था कि उनके इस आइडिया और स्टार्टअप को लेकर शो की जज नमिता थापर पक्का इंट्रेस्टेड होगी।

आखिर में ढाई पर्सेट इक्विटी पर एक करोड़ रुपए में डील भी फाइनल हो गई। अब इस दौरान शो के दूसरे जज पीयूष और अमित की उनसे क्यों भिड़ंत हुई, इससे मुझे कुछ लेना-देना नहीं

अरूण ने जब शॉर्क टैंक में अपने इस प्रोडक्ट के बारे में बताया तो जज भी प्रभावित हुए। नमिता थापर ने उनके साथ डील की।



थापर बोलीं- इस कैटेगरी की मैं क्वीन हूं, पीयूष बंसल और अमित जैन भी करना चाहते थे इन्वेस्ट

जनित्री डिवाइस के बारे में सुनते ही शो की जज नमिता थापर तुरंत इनवेस्टमेंट के लिए तैयार हो गईं और बोलीं- ये मेरी डील है, क्योंकि इस कैटेगरी की मैं क्वीन हूं।

इसके बाद दूसरे जज पीयूष बंसल और अमित जैन भी एक साथ इसमें इन्वेस्ट करने की इच्छा जताई। पीयूष ने नमिता से कहा कि वह उनके साथ ज्वॉइंट डील में भी शामिल हो सकती हैं, लेकिन नमिता ने जॉइंट डील करने से मना कर दिया।

पीयूष और अमित भी अरुण की हर शर्त मानने के लिए तैयार थे, लेकिन नमिता थापर ने तुरंत ही अरुण को उन दोनों से बड़ी डील ऑफर कर दी।

कॉलेज में पढ़ते-पढ़ते रोबोट एजुकेशन का स्टार्टअप बनाया

अरुण ने बताया कि उनके दादा का बिजनेस था और पापा पोस्ट ऑफिस में सरकारी कर्मचारी थे। उन्होंने बारहवीं तक पढ़ाई अलवर में की। इसके बाद इंजीनियरिंग की तैयारी के लिए कोटा चले गए।

साल 2011 में ही उनका VIT कॉलेज बंगलुरु में टेक में एडमिशन हो गया। यहां फर्स्ट ईयर में उन्होंने रोबोट कॉम्पिटिशन में भाग लिया और कई अवार्ड्स जीते।

सेकेंड ईयर में ही उन्होंने अपने दो दोस्तों के साथ मिलकर रोबोट मेकिंग एजुकेशन का एक स्टार्टअप बना लिया। तीनों मिलकर स्कूल और कॉलेज स्टूडेंट्स को रोबोट बनाने की ट्रेनिंग देते थे।

अरूण ने बताया कि वे अगले साल तक 5 से 6 करोड़ रुपए का टारगेट रख रहे हैं। शॉर्क टैंक के शो के जज दोगुना ऑफर तक देने को तैयार हो गए थे।


इससे पहले गुड़गांव में एनालिस्ट की जॉब की, 2 साल बाद छोड़ी
इसके बाद अरुण ने VIT से ही एमटेक पूरा किया। इसके तुरंत बाद वे फाइनेंशियल सर्वाइवल के लिए गुड़गांव की एक कम्पनी में पेटेंट एनालिस्ट की जॉब पर लग गए। वहां उन्होंने 2 साल तक काम किया।

पोस्ट ग्रेजुएशन के समय से ही वे हेल्थकेयर में टेक्नोलॉजी के जरिए इम्पेक्ट लाने वाला स्टार्टअप बनाना चाहते थे। जॉब के साथ ये करना संभव नहीं हो पा रहा था। अंत में उन्होंने ये जॉब छोड़ दी।

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