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लंबे समय तक बैठने से हार्ट अटैक - कैंसर, हर आधे घंटे पर कुर्सी छोड़ 5 मिनट टहलना फायदेमंद




नमस्कार,

आप अपनी और अपने परिवार की सेहत का ध्यान बेहतर ढंग से रख सकें, इसके लिए हम 'वीकली हेल्थ ब्रीफ' लाए हैं। इसमें आपको मिलेंगे प्रमुख हेल्थ अपडेट्स, महत्वपूर्ण रिसर्च से जुड़े आंकड़े और डॉक्टरों की रेलेवेंट सलाह। इसे मात्र 2 मिनट में पढ़कर आपको सेहत से जुड़ी जरूरी जानकारियां मिलेंगी और आप परिवार का बेहतर ख्याल रख पाएंगी।

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लंबे समय तक बैठने से हो सकता है हार्ट अटैक - कैंसर, हर आधे घंटे पर 5 मिनट टहलने से ब्लड शुगर लेवल होगा कम

कुर्सी पर लंबे समय तक बैठने से आप डायबिटीज, हार्ट अटैक, कैंसर, डिमेंशिया जैसी गंभीर बीमारियों के शिकार हो सकते हैं।

अगर आप लंबे समय तक कुर्सी पर बैठे रहते हैं, तो आप डायबिटीज, हार्ट अटैक, कैंसर, डिमेंशिया जैसी गंभीर बीमारियों के शिकार हो सकते हैं।




रिसर्चर्स ने 11 स्वस्थ वयस्कों और बुजुर्गों को आठ घंटे के लिए प्रयोगशाला में बैठने के लिए कहा गया। जिसमें एक मानक वर्किंग डे का पर नजर रखी गई। पांच अलग-अलग दिनों के दौरान। इसमें एक ग्रुप के लोगों ने बाथरूम का इस्तेमाल करने के लिए अपनी सीट छोड़ी। वहीं, अन्य दिनों में अलग-अलग लोगों को कम चलने के लिए कहा गया।

एक दिन हर आधे घंटे में एक मिनट और दूसरे दिन हर घंटे में पांच मिनट टहलने के लिए कहा गया। इसमें पाया कि पूरे दिन बैठे रहने की तुलना में हर आधे घंटे में पांच मिनट टहलने से ब्लड शुगर के
लेवल में कमी देखी गई

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हर आधे घंटे में पांच मिनट टहलने से लगभग 60 फीसदी खाने के बाद ब्लड शुगर कम हो गया था। खाने के बाद टहलना वॉकिंग ब्रेक लेने के मानसिक स्वास्थ्य लाभ भी थे। यह बात जर्नल मेडिसिन एंड साइंस इन स्पोर्ट्स एंड एक्सरसाइज में पब्लिश स्टडी में की गई है।

हाई ब्लड प्रेशर से हो सकते हैं पागल

हाई ब्लड प्रेशर से चिंता, क्रोध, अवसाद, नकारात्मक भावनाएं जैसी तमाम समस्याएं होती हैं। एक नई रिसर्च में सामने आया है कि हाई ब्लड प्रेशर से व्यक्ति पागलपन का शिकार भी हो सकता है।

रिसर्चर्स ने मेंडेलियन रेंडमाइजेशन नामक एक तकनीक का इस्तेमाल किया। जिससे पता लगाया कि 30 से 60 फीसदी के बीच ब्लड प्रेशर आनुवंशिक वजहों से होता है।

इसमें यह भी देखा गया कि कुछ दवाओं के प्रति किसी व्यक्ति की बॉडी की प्रतिक्रिया क्या है, पर्यावरण उसमें क्या भूमिका निभाता है और बीमारियां के बढ़ने की वजह क्या है। इस तकनीक से इन सवालों के जवाब पता लगाने की कोशिश की गई। जीनोम वाइड एसोसिएशन स्टडीज के वैज्ञानिकों ने रक्त के नमूनों से निकाले गए पूरे   जीनोम  का बड़े पैमाने पर रिसर्च आंकड़ों का अध्ययन किया। यह रिसर्च ओपन- एक्सेस जर्नल जनरल साइकियाट्री में पब्लिश की गई है।



सेब के जूस से कम होगी पेट की चर्बी

सेब पेक्टिन और पॉलीफेनोल्स दोनों से भरपूर होते हैं, जो मेटाबॉलिज्म के लिए अच्छे होते हैं। यह फैट न की प्रक्रिया को धीमा कर देते हैं। रिसर्चरों का कहना है कि फलों में पानी की मात्रा के साथ फाइबर आपका वजन कम करने में मदद करता है।

ओलेओ साइंस ऑफ जर्नल में पब्लिश रिसर्च में या गया है कि सेब का रस पीने के आठ हफ्तों बाद आंत के फैटी एरिया में फर्क पड़ा। पॉलीफेनोल युक्त जूस पीने से प्रतिभागियों में पेट की चर्बी काफी कम पाई गई ।

टोक्यो की केइयो के योको अकाज़ोम यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने 12 सप्ताह के लिए सेब जूस जरूरत के हिसाब से रोज 94 मोटे वयस्क पुरुषों और महिलाओं को पीने के लिए दिया। वहीं, 30 वयस्क पुरुषों और महिलाओं को 4 सप्ताह तक रोज सेब जूस की तीन गिलास पीने को दिया गया। रिर्सचरों ने पाया कि जो लंबे समय तक सेब का जूस पीते रहे, उनके पेट की चर्बी काफी कम हुई।

ईटिंग डिसआर्डर गंभीर बीमारियों की वजह
जरूरत से ज्यादा खाना सेहत के लिए खतरनाक है। प्रीमोनोपॉज के दौरान ईटिंग डिसआर्डर से महिलाओं में गंभीर बीमारियां पनपने लगती हैं।

इस रिसर्च में प्रीमेनोपॉज़ और प्राइमरी पोस्टमेनोपॉज़ के दौरान ईटिंग डिसऑर्डर के लक्षणों की जांच की गई। इस पर रिसर्चरों ने ईटिंग डिसऑर्डर के लक्षणों के स्टक्चर और महत्व की तुलना करने के लिए नेटवर्क एनालासिस स्टेटिकल मॉडल का इस्तेमाल

किया।

अधेड़ उम्र की महिलाओं में ईटिंग डिसऑर्डर पैथोलॉजी की एक प्रमुख विशेषता बनी हुई है।





ह्यूस्टन की यूनिवर्सिटी ऑफ टैक्सिस हेल्थ साइंस सेंटर की रिसर्चर डॉ. स्टेफ़नी फ़ौबियन ने बताया कि ईटिंग डिसऑर्डर शरीर के लिए बहुत ज्यादा खतरनाक है। अधेड़ उम्र की महिलाओं में ईटिंग डिसऑर्डर पैथोलॉजी की एक प्रमुख विशेषता बनी हुई है। विशेष रूप से वजन बढ़ने का डर और खाने की आदतों पर नियंत्रण खोने का डर पेरिमेनोपॉज और शुरुआती पोस्टमेनोपॉज में खाने के विकारों के केंद्रीय लक्षण हैं। यह रिसर्च जर्नल मेनोपॉज़ में पब्लिश हुई है।



टाल-मटोल करने के कारण अनिंद्रा, चिंता और अकेलापन

जो लोग किसी भी काम को लेकर टाल-मटोल करते हैं, तो इसका असर उनके काम के अलावा हेल्थ पर भी पड़ता है। खास कर छात्रों के टालमटोल करने पर उनकी एजुकेशन पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। स्वीडन के रिसर्चरों ने बताया है कि जो लोग किसी भी काम को लेकर टालमटोल करते हैं, उन्हें अनिंद्रा, चिंता, अवसाद, शरीर के किसी हिस्से में दर्द और पैसे की समस्या हो सकती है। ऐसे में यूनिवर्सिटी के छात्रों की एजुकेशन पर बहुत असर पड़ता है।

स्वीडन की मेडिकल यूनिवर्सिटी करोलिंस्का इंस्टिट्यूट के रिसर्चरों ने स्टॉकहोम और उसके आसपास के 8 यूनिवर्सिटी से 3525 छात्रों को भर्ती किया और उन्हें एक साल के लिए हर तीन महीने में एक प्रश्नपत्र हल करने को दिया। इनमें से नौ महीने बाद 2,587 छात्रों ने प्रश्नपत्र का जवाब दिया।

इसके बाद रिसर्चरों ने टालमटोल ज्यादा करने वाले छात्रों की तुलना कम टालमटोल करने वालों से की। इसमें पता चला कि जिन्होंने कम टालमटोल की, वो अवसाद, चिंता और तनाव में थे। वहीं, जिन्होंने ज्यादा टालमटोल की वे छात्र कंधों में दर्द, खराब नींद, अधिक अकेलापन, अधिक वित्तीय कठिनाइयों से जूझ रहे थे। यह रिसर्च जामा नेटवर्क ओपन में पब्लिश की गई।

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