राजस्थान बनाएगा बिजली वह भी पानी से

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दिन में सूरज, रात को पानी से बिजली बनाएगा राजस्थान: 
        बांध में पंप से पानी चढ़ाकर कुदरती बहाव से बिजली बनाने वाले चंद राज्यों में होगा शुमार


राजस्थान में सूरज और हवा के अलावा अब पूरे साल पानी से भी बिजली बनाई जा सकेगी। दिन में जब बिजली सस्ती होती है, तब पानी को पंप से बांध के ऊपर बने वाटर स्टोरेज में स्टोर कर लिया जाएगा। रात को जब बिजली की दरें दिन के मुकाबले 3 से 4 गुना ज्यादा होती है, तब पानी को टरबाइन से गुजारकर वापस डैम में छोड़ दिया जाएगा। इस तकनीक से बिजली बनाने पर राजस्थान देश के चुनिंदा राज्यों में शामिल हो जाएगा। फिलहाल दक्षिण के कुछ राज्यों में इस PSH (पंप स्टोरेज हाइड्रोपावर) टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जा रहा है।

सोलर क्रांति के लिए करीब 100 कंपनियां बाड़मेर, जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर, जालोर में सोलर प्लांट लगाने के लिए जमीन तलाश रही हैं। वैसे ही हमारे डैम एरिया में भी कंपनियां हाइड्रोलिक प्लांट लगाने के लिए आएंगी। अब आप सोच रहे होंगे कि हाइड्रोलिक पावर प्लांट की बात राजस्थान में कैसे संभव है? क्योंकि हाइड्रोलिक पावर प्लांट उन नदियों के बांधों में सफल है, जहां पानी की आवक भरपूर रहती है, लेकिन राजस्थान में ऐसी नदियां और बांध नहीं है।

अभी राजस्थान में राणा प्रताप सागर डेम और माही बजाज सागर डेम पर हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स हैं, लेकिन मानसून में जब डेम ओवरफ्लो हो जाते हैं, तब ही इनसे बिजली बनाई जाती है। इस वजह से अभी नाम मात्र की 24 मेगावाट हाइड्रो एनर्जी जनरेट हो रही है।

इस रिपोर्ट में समझिए, भरपूर आवक न होने के राजस्थान में कैसे पानी से बिजली बनाई जाएगी...





रात में बिजली बनाने का ये फायदा होगा

दिन में सोलर पैनल से बनने वाली बिजली का इस्तेमाल कर पानी बांध के ऊपर बने वाटर स्टोरेज में चढ़ाया जाएगा। दिन के समय बिजली की कीमत 2.50 से 3 रुपए प्रति यूनिट होती है। इसके बाद पीक आवर्स में शाम 6 से रात 11 बजे तक जब बिजली की कीमतें 7-12 रुपए यूनिट होती हैं, तब वाटर स्टोरेज से पानी को वापस बांध में छोड़ा जाएगा और टरबाइन के जरिए बिजली बनेगी। पीक टाइम में बिजली को महंगी दरों पर बेचा जा सकेगा। लागत और बेचने के बीच का मुनाफा कम्पनियां कमाएंगी।


पानी से बिजली बनाने की जरूरत क्यों पड़ी

राजस्थान सालभर से कोयला संकट से जूझ रहा है। ऐसे में राजस्थान रिनुएबल एनर्जी कॉर्पोरेशन (RREC) ने दिन के अलावा रात के समय भी बिजली बनाने के उपाय पर काम करना शुरू किया।
RREC ने बीसलपुर, माही बजाज सागर, राणा प्रताप सागर जैसे बांधों के पानी से बिजली बनाने के लिए पंप स्टोरेज हाइड्रोपावर (PSH) को लेकर स्टडी और सर्वे शुरू कर दिए हैं।

2030 तक सभी राज्यों को 43 प्रतिशत बिजली सप्लाई ग्रीन एनर्जी से करनी होगी। राजस्थान सरकार और RREC का मानना है कि सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और पंप स्टोरेज


प्लांट चौथाई कीमत में, बिजली उत्पादन खर्च भी आधा

सवाल है कि ग्रीन एनर्जी के तहत बिजली उत्पादन कर रही कंपनियों को PSH तकनीक क्यों लुभा रही है। इसके पीछे दो बड़े कारण हैं।

1.पहला : महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में PSH तकनीक के जरिए बिजली उत्पादन करने वाली कंपनियों की रिपोर्ट के अनुसार आमतौर पर बड़े बांधों पर हाईड्रोपावर प्लांट पर जितना खर्चा, उससे चौथाई कीमत तक में छोटे बांध पर ये तकनीक स्थापित की जा सकती है।

2.दूसरा : प्लांट स्थापित करने की बड़ी लागत और संचालन खर्च को देखें तो बड़े हाइड्रोलिक प्लांट की तुलना में PSH तकनीक से बिजली उत्पादन में आने वाला खर्चा भी आधे से कम है। बड़े हाइड्रोलिक प्लांट पर बिजली उत्पादन में 2.5 से 3.50 करोड़ रुपए प्रति मेगावाट के बीच खर्चा आता है। तुलनात्मक रूप से प्लांट स्थापित करने की लागत 25 फीसदी होने और संचालन खर्च कम होने के कारण बिजली उत्पादन में 1 से 1.50 करोड़ रुपए प्रति मेगावाट के बीच खर्चा आता है।

ये तकनीक बांध वाले जिलों टोंक, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़ का भाग्य बदलेगी और ये बिजली उत्पादक के रूप में जाने जाएंगे। फोटो बांसवाड़ा के माही बांध का है।



PSH तकनीक अपनाने वाला पहला राज्य बन सकता है राजस्थान

RREC के एमडी अनिल ढाका के अनुसार आ वाला समय PSH तकनीक के प्लांट्स और बैटरी स्टोरेज का होगा। पावर स्टोरेज का कॉन्सेप्ट है कि जब सोलर या विंड या हाइड्रो (पानी) से उत्पादन नहीं हो, तो उस समय भी बिजली बनाई जा सके। राजस्थान भी PSH की दिशा में आगे बढ़ रहा है, लेकिन जब तक प्लांट स्थापित नहीं हो जाता, तब तक यह कहना मुश्किल है कि राजस्थान ही ऐसा प्लांट लगाने वाला पहला राज्य होगा।


ग्रीन एनर्जी की मंडी बनेगा राजस्थान, यहां से होगी बड़ी-बड़ी खरीद

केंद्र सरकार के निर्देश के अनुसार 2030 तक सभी राज्यों को 43 प्रतिशत बिजली सप्लाई ग्रीन एनर्जी से करनी होगी। ऐसा नहीं करने पर राज्यों पर भारी पेनाल्टी लगाने के भी प्रावधान होंगे। राजस्थान सरकार और RREC का मानना है कि राज्य पैनल्टी से बचने के लिए ग्रीन एनर्जी की मांग करेंगे, जो सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और पंप स्टोरेज हाइड्रोपावर (PSH) अधिकतर राजस्थान से पूरी हो सकती है।

अगर भारत 2023 तक 500 गीगावाट रिन्यूएबल एनर्जी प्रोडक्शन का टारगेट पूरा कर लेता है, तो प्रदूषण फैलाने वाले कोयला, गैस और परमाणु बिजली घरों को बंद किए बिना भारत अपनी दोगुनी बिजली की मांग को पूरा करने और उत्सर्जन को कम करने में कैपेबल हो जाएगा। अमेरिका के ग्लासगो में यूनाइटेड नेशन जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में पीएम नरेंद्र मोदी के इस विजन को मान्यता दी गई है कि भारत ऐसा कर सकता है।


राजस्थान इन राज्यों के साथ मिलाएगा कंधा

राजस्थान में अब ऐसी संभावनाएं खोजी जा रही है, जहां बांधों में 12 महीने पानी रहता है, लेकिन बिजली नहीं बन पाती। राज्य सरकार का मानना है कि पंप स्टोरेज हाइड्रोपावर (PSH) एक ऐसा उपाय है, जो राजस्थान में संभव है। 
आंध्र प्रदेश, कर्नाटक व महाराष्ट्र में इस उपाय पर काम शुरू हो चुका है, जो सफल है। इन दोनों राज्यों में स्थित चार-पांच बांधों पर PSH तकनीक से बिजली बनाई जा रही है। तेलंगाना, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ में भी कम्पनियां पंप स्टोरेज हाइड्रोपावर प्लांट लगाने की इच्छुक हैं। ये राज्य गंभीरता से इस तकनीक से बिजली बनाने के लिए गम्भीरता से विचार कर रहे हैं।

गुजरात की तर्ज पर राजस्थान के माही जैसे कुछ बड़े डैम पर फ्लोटिंग सोलर लगाए जाएंगे। इससे सौर उर्जा तो मिलेगी ही, दूसरा फायदा ये कि पानी का वाष्पीकरण भी रुकेगा।


दोहरे फायदे - गुजरात की तर्ज पर फ्लोटिंग सोलर भी जल्द

गुजरात की तर्ज पर राजस्थान के माही जैसे कुछ बड़े डैम पर फ्लोटिंग सोलर लगाए जाएंगे। इससे राजस्थान को दो तरह से फायदा होगा। इससे सौर ऊर्जा तो मिलेगी ही, दूसरा फायदा ये कि पानी का वाष्पीकरण भी रुकेगा।

विशेषज्ञों के अनुसार राजस्थान में तेज गर्मी पड़ने के कारण हर गर्मियों में डैम में एकत्रित कुल पानी का 20 फीसदी पानी हवा में भाप बनकर उड़ जाता है। जब डैम के पानी वाले एरिया के ऊपर सोलर पैनल लग जाएंगे तो ये 20 फीसदी पानी हवा में उड़ने से बचेगा। ऐसे में पानी की कमी से होने वाली परेशानी से भी थोड़ी निजात मिलेगी।




हाइड्रो पावर प्लांट और पंप स्टोरेज हाइड्रोपावर (PSH) में अंतर
• भारत में कुल हाइड्रो पावर प्लांट की संख्या 197 है। ये प्लांट प्रदूषण रहित होते हैं।

• हाइड्रो पावर प्लांट को बनाने की लागत बहुत अधिक है और वक्त भी बहुत लगता है। ये प्लांट थर्मल सहित अन्य सभी तरह के पॉवर प्लांट के मुकाबले बहुत अधिक कोस्ट और समय खाते हैं।

• इस कारण पंप स्टोरेज हाइड्रोपावर (PSH) के बनने में कम खर्चे और संचालन में भी कम खर्चा लगने के कारण इसे एक बड़े विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।

• हाइड्रो पावर प्लांट की पावर जेनरेशन की निर्भरता कुछ हद तक मौसम के आधार पर रहता है। अगर बहुत ज्यादा काम बारिश होता है। इसकी पावर जेनरेशन कैपेसिटी भी कम हो जाती है। लेकिन PSH भरे हुए बांधों पर काम करता है, बांध में पानी की आवक रुकने से भी उपलब्ध पानी के जरिए ही बिजली उत्पादन होता रहता है।

कौन है नंबर वन

• दार्जिलिंग, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक के सरावती जिले में बना प्लांट भारत के पहले हाइड्रो पावर प्लांट्स में से हैं।

• बहुत सारी नदियों के कारण नार्वे अपने देश के 95% पावर की आपूर्ति हाइड्रो पावर प्लांट के द्वारा ही करता है।

• सबसे बड़े हाइड्रो पावर प्लांट की बात करें तो ब्राजील में विश्व का सबसे बड़ा हाइड्रो पावर प्लांट है, जिसकी टोटल क्षमता पावर उत्पादन करने के मामले में 12000 मेगावाट है।

पहले इटली फिर अमेरिका ने लगाया प्लांट
वर्ष 1890 में इटली ने सबसे पहले पंप स्टोरेज हाइड्रोपावर (PSH) का उपयोग किया और इसके बाद वर्ष 1930 में अमेरिका ने ये तकनीक अपनाई ।


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